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Van basant
हरे - भरे सुस्त वन में फूल गुँथे सजे तन में पलाश चटक रंग दमके नन्हा ओस मोती चमके नन्हे मृग चाप सुनो कंद खोदो जाल बुनो पत्ते गिरे धरा कांपे सिंह का स्वर भांपे घनी काली देवदार छाया धुप छुपी रात्रि लाया सौंधी गीली गंध आती नन्ही कोपल गीत गाती ढंकी बुझी काली छांया नवस्रोत ओतप्रोत मधुमास आया शांत नदी वेग रुके बोझ तले फल वृक्ष झुके शांत नदी चंचल धारा चतुर चपल यौवन हारा देवदार घने ढके हुए बोझिल पत्ते ज्यों थके हुए काला नाग शिवलिंग धरे स्वर्ण कलश जल दुग्ध भरे सर्व सर्वत्र नीलकंठ छायां
कली चटकी पुलकित काया
झूम नव बसंत आया ||
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