os ki ek bundh .....
रात के अँधेरे से ,
सुबह के उजाले तक ,
नर्म नर्म घास पर ,
पेड़ पर पौंधो पर ,
और सुन्दर फूलों के होंठों पर ,
है मेरा अस्तितव ,
मैं हूँ ओस की एक बूँद ||
लघु है जीवन यौवन मेरा ,
लघु है भाव तन और मन ,
सृष्टि पोषित ताप किरण से ,
मृत्यु सी काली रात है अंत ,
इस ठण्डी रात में छुपा ,
मेरा बचपन यौवन और और वृद्ध मन ,
सूरज की पहली किरण संग आ पहुंचा मेरा अंत ,
पत्तों की सीमा तक फैला मेरा अस्तित्व ,
लगा है सिमटने एक बूँद में ,
हूँ पत्तों के अंतिम सिरे पर ,
सूरज की पहली किरण के साथ ,
लगने धरती के गले मैं ,
नहीं अफ़सोस मुझे अपने अंत का ,
है यही नियम प्रकृति का सृष्टि का ,
जो मुझे निभाना है ,
हर ठण्डी काली रात को फिर मुझे ,
इन्हीं वृक्ष घास पत्तों पर लौट आना है ,
क्योंकि मैं हूँ ओस की एक बूँद ||
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