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श्वेत मखमली वस्त्र धरे,
पवित्र जीवन द्रव्य भरे,
हिम श्वेत अलसाया तन,
वो दिव्य दूतों का आगमन ||
वीर सुलभ गुण साकार,
हो वायु रथ पर सवार,
तुम निकले हे दिव्य दूत,
लिए सुंदरी केश आकार ||
सहस्रों नेत्र तने तुम पर,
दुःख पीड़ा वृक्ष ठूँठ खड़े,
बरसो जीवन अमृत बनकर,
भूमि,अन्न ,धन फूट पड़े ||
सुबह सवेरे की बेला पर,
पहुँचे पर्वत,घाटी और तट,
अब बरसो तुम हे जलधर,
हो लकदक झील,नदी और घट ||
आखिर बरसे सूखे तन-मन पर,
अनुभव, जीवन और यौवन पर,
बरसे फूल,पत्ते और क्यारी पर,
पशु-पक्षी और नर-नारी पर ||
तन तृप्त और मन तृप्त,
तृप्त हो गई हर अभिलाषा,
योँ ही लौटो श्वेत रथ पर,
बन नव जीवन की आशा ||
चले फिर नये पथ पर,
तुम कुछ नया उपजाने को,
दिव्य-द्रव्य फिर लादो रथ पर,
नव-हर्ष प्रेम पाने को ||
- सर्वेश नैथानी
पवित्र जीवन द्रव्य भरे,
हिम श्वेत अलसाया तन,
वो दिव्य दूतों का आगमन ||
वीर सुलभ गुण साकार,
हो वायु रथ पर सवार,
तुम निकले हे दिव्य दूत,
लिए सुंदरी केश आकार ||
सहस्रों नेत्र तने तुम पर,
दुःख पीड़ा वृक्ष ठूँठ खड़े,
बरसो जीवन अमृत बनकर,
भूमि,अन्न ,धन फूट पड़े ||
सुबह सवेरे की बेला पर,
पहुँचे पर्वत,घाटी और तट,
अब बरसो तुम हे जलधर,
हो लकदक झील,नदी और घट ||
आखिर बरसे सूखे तन-मन पर,
अनुभव, जीवन और यौवन पर,
बरसे फूल,पत्ते और क्यारी पर,
पशु-पक्षी और नर-नारी पर ||
तन तृप्त और मन तृप्त,
तृप्त हो गई हर अभिलाषा,
योँ ही लौटो श्वेत रथ पर,
बन नव जीवन की आशा ||
चले फिर नये पथ पर,
तुम कुछ नया उपजाने को,
दिव्य-द्रव्य फिर लादो रथ पर,
नव-हर्ष प्रेम पाने को ||
- सर्वेश नैथानी
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