parvat .....
अपने अपनों से घिरे हुऐ ,
रुखा-सूखा बंजर काला चर्म ,
कितने जीवों को धरे हुऐ ,
विष सा जहरीला उसका यौवन ,
शाप ग्रस्त कूबड़ सा तन ,
वो विषधारी, उन्मादी ,
सदा अहम् में चूर रहा ,
शीश उठाएे नील गगन मे ,
वह शेष धरा को घूर रहा ,
जलधर जब धोते तन को ,
घुप अंधकार छा जाता है ,
वक्ष से उसके मेघ जब टकराते ,
तब थल जल हो पाता है ,
माना अहम् का अंश बहुत ,
कर्तव्य नियम पर वो चलता है ,
नदी, पुष्प, हरियाली सब छणभंगुर ,
पर हटी शिखर कब ढलता है ,
हर विपदा में वो टिका हुआ ,
तब जीवन धरा पर फलता है ||
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