sagar gaatha .......

आज हवा के एक उत्सुक टुकड़े ने ,
सागर तट का रुख किया ,
धूल ढकी नीली चादर को ,
पल मे जीवन से सुर्ख किया ,
हटी धूल की गीली चादर ,
शांत नील वृद्ध मुख प्रकट हुआ ,
ले अंगड़ाई लहरों सी उसने ,
उत्सुक टुकड़े को स्पर्श किया ,
सजीव,आत्मीय स्पर्श पुलकित हो ,
चंचल टुकड़े ने पूछ लिया ,
तुम हो रक्षक ,जीवन सृजक ,
क्यों तुमने यौवन का त्याग किया ,
युवा सुलभ अठखेली को क्यों ,
दर्शन गंभीरों से बाँध लिया ,
कभी रचते तुम प्रलय तांडव ,
पल मे मृत्यु से शांत हुए ,
 सहस्त्रों की बलि वेदी पर ,
क्यों मानव शांति के पाठ किये ,
सुन नन्हे तर्कों को ,
वृद्ध नील समुद्र वो शांत हुआ ,
आँखों से छलके कुछ आँसू ,
नन्हे बालक का शीश छुआ ,
हूँ पितृ मैं मानवता का ,
मुझ मे जीवन का सृजन हुआ ,
मुझसे ही जीवन पुष्प खिले ,
मैंने हर जीवन तर्क छुआ ,
मुझमे व्याप्त युगों की परते ,
नये युग का आह्वान करे ,
स्वयं सृजन को लील सकूँ मैं ,
उस ऊर्जा का संचार करे ,
करूँ युगों का आरम्भ-अंत ,
यही काया का मूल रहा ,
पुरातन को नवीन करूँ
मैं कर्तव्य लता से झूल रहा ,
नन्हे टुकड़े तुम लौटो मूल को ,
जीवन आद्र उपहार दिया ,
लघु जीवन का स्मरण करते ,
फिर जीवन चक्र को नमन किया ||
                                                    -सर्वेश नैथानी  

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