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samay .........
क्यों कर होता हिम श्वते शिखर ,
समय तो निर्मल बहता जल है ,
कब था मैदानों सा समतल ,
ये ऊबड़ खाबड़ पथरीला तल है ,
रहा बंजर भूमि सा कठोर कवच ,
ये पुरुषार्थ के हल का फल है ,
कितना पाओगे तुम कितना मैं ,
सब कर्मों के पल का छल है ,
समय गर्भ छिपे पल का क्या ,
हरे भरे सपनों से आँखें नम थी ,
लहलहाते सपनों का क्या था ,
जब अनुभव की खाद ही कम थी ,
फिर भी स्वप्न संजोयें हो क्यों कर ,
धैर्य कहाँ धर पाओगे ,
समय रेत की बूँद सरीखी ,
बस बंद मुट्ठी रह जाओगे ,
रेशा रेशा क्यों जुगत करे तू ,
क्यों कर आँचल से आँसूं छाने ,
समय के आते छिटक पड़ेंगे ,
तेरे सपनों के ताने बाने ,
समय सतरंगी फूल तो क्या ,
रंग दे तेरा मन मेरा मन क्यों कर ,
सोख ही लेगा लघु जीवन के रंगों को ,
वक्त का भौंरा हल्के से छू कर ,
अनमोल धरा की हो अमूल्य कृति ,
यह मानव मन की व्याकुलता,छल है ,
समय अश्व को बांध सके जो ,
कब रहा भुजा मे वो बल है ,
कर्तव्य पथ पर जो रुका नहीं कभी ,
वो समय का निर्मल बहता जल है ||
- सर्वेश नैथानी
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