sheet prabhat ...
अंधेरी धुंधली वो ठंडी सुबह ,
सोखे एक गाँव का सुनापन ...
खुलते किवाड़ की कर्कश गति ,
ऊँची गोद का अपनापन ,
गिरते झरनों की वो मधुर कल कल ,
आती शीत का पहला अनुभव ,
पुराने छप्परों का बेतरतीब झुण्ड ,
नन्ही खिड़कियों से झाँकता धुँआ ,
चूल्हे की गीली लकड़ियों का झुलसता शोर ,
दम साधे देखें एकटक पूरब की ओर ,
वही जीवन की आशा जन्म लेगी ,
वो मौत से ठण्डे सूनेपन को ,
फिर सिन्दूरी जीवन देगी ,
बिछी आँगन में ओस की गीली चादर ,
ओढ़ लेगी उन पैरों की गर्म छाप ,
सुलगते चूल्हे पर चढ़े बर्तन से ,
जब निकलेगी गर्म गर्म भाप ||
- सर्वेश नैथानी
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