sulagti raakh hoon main ..........
बेपरवहा छू कर मत गुजरो ,
अभी सुलगती राख हूँ मैं ,
योँ पल दो पल में मत बिसरो ,
एक छुपी बुझी सी आग हूँ मैं ,
था मेरे भी यौवन का साल हरा ,
मुझमे भी था जोश भरा ,
पर चिर जीवन के जो स्वन थे पाले ,
वो वैभव पल में खण्डित कर डाले ,
कभी जीवन सुख का साक्ष्य रहा ,
कभी जीवन पर अभिशाप था मैं ,
स्वप्न बहुत से पाले थे मैंने ,
पर अब दो मुटठी खाक हूँ ,
बेपरवाह छू कर मत गुजरो ,
अभी सुलगती राख हूँ मैं ,
मेरी परतों में लुके छुपे ,
होंगे शोले अब भी बाकी ,
शायद मुझमें भी कौंधे ,
प्रलय तांडव की झाँकी ,
कहीं तो होगी वो पुरजोर हवा ,
जो अपने रंग मे रंग लेगी ,
मेरे धुंधले से दर्पण में ,
छिपती तस्वीरों को स्वर देगी ,
तब मेरे भी अंगारे हुंकार भरेंगे ,
स्वप्न सलोने तब श्रृंगार करेंगे,
मुझमें भी खुशियाँ चहकेंगी ,
मेरी भी आशाएँ महकेंगी ,
तब मैं केवल शमशान नहीं ,
पवित्र हवन कुण्ड कहलाऊँगा ,
हर सुख मंगल पर्वों पर ,
पुण्य आहुति पाऊँगा ,
बेपरवहा छू कर मत गुजरो ,
अभी सुलगती राख हूँ मैं ||
- सर्वेश नैथानी
बेहतरीन 👍
जवाब देंहटाएंअदभुत
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