palash ......
उस दिन अचानक,
भरी दोपहरी ,
उड़ चला आया ,
एक नन्हा पलाश......... एक दम अचानक !
मासूम, आकर्षक ,
लिएे संग रंग सिंदूरी ,
रंगने ललिमा से ,
जीवन मेरा ,
मानो हो कहता ,
रहकर मौन.............. छू लो तुम !
सहमे-सहमे मेरे हाथ ,
निहारते हर पल, हर दिन ,
पर बढ़ नही पाते ,
नही पाते तुम्हें समेट ,
अपनी अंजलि मे ,
शायद बँधी है ,
कुछ दूरिया भी ,
संग हमारे ,
मुस्कराते भी है ,
शायद चाहते भी है ,
पऱ यह निष्ठुर संकोच ...... !
फिर भी रहते हो बनकर खुश्बू ,
चारों तरफ मेरे ,
जानते भी हो शायद ,
निहारता हूँ तुम्हें ,
हर दिन हर पल ,
हूँ आभारी सह्रदय ,
महकाया है जो तुमने ,
मेरा तन मेरा मन ,
और यह नीरस जीवन ,
बस है एक आग्रह शेष ,
एक करूणा संदेश ,
दे दो मुझको कुछ अपनी ललिमा ,
कुछ मेरा स्पर्श भी तुम ले लो ,
आकर मुझमें बस जाओ तुम ,
या मुझे पहले सा जीवन दे दो ||
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें